Monday, January 24, 2011

हमें याद करना

अफ़सानों के गिरेबाँ में झाँकना
तो हमें याद करना
दीवानों के कारवाँ में झाँकना
तो हमें याद करना।

जब मिल न पाए
ग़म में कोई हँसने वाला
जीने की तमन्ना में
बसने वाला
तो नज़र उठा के
आसमाँ में झाँकना
औ' याद करना।

परदों से खिड़कियों को
जो न ढँक पाया
आँखों से आँसुओं में
न बरस पाया
हो सके तो
उसके गुनाहों को
कभी माफ़ करना।

Thursday, January 6, 2011

यार हवा

यार हवा
चुप रहो
मत बोलो इतने ज़ोर-ज़ोर से
ठंड की भाषा।
चुप रहो
उसी तरह
जिस तरह
ये ऊँचे-ऊँचे पेड़ चुप हैं
तुम्हारे ये थपेड़े खाकर भी,
मत बोलो उसी तरह
जिस तरह
ये हरा-भरा मैदान कुछ नहीं कहता
अपनी घास को सफेद बर्फ में बदलते देखकर भी,
चुप रहो
जिस तरह
खिड़की के कोने में बैठी
वह बिल्ली चुप है
अपने-आप को परदे के पीछे छुपाकर,
जैसे
ये सड़क चुप है
अपने ऊपर बर्फ का बोझ सहते हुए भी,
उसी तरह
जिस तरह
बाबा के आगे जलते
अलाव की आग कुछ नहीं कहती,
वैसे ही जैसे
भूरा ओवरकोट पहने
मेरी पड़ोसन चुप है।
चुप रहो; क्योंकि
तुम्हारी यह भाषा बहुत ठंडी है
जो हमारे भीतर की गरमी सोख लेती है,
मत बोलो; क्योंकि
तुम्हारी यह तेज़ आवाज़
हमारी कई आवाज़ों को लील जाती है।
और इसीलिए
इन सब की तरह तुम भी
कुछ मत बोलो
चुप रहो,
यार हवा।