Saturday, April 3, 2010

याद आते हो

सागर किनारे की लहरें जब छूती हैं मुझे ,
तुम याद आते हो
डूबते सूरज के पीछे से झाँकते हो
धीरे से मुस्कुराते हो,
तुम याद आते हो।
अमलतास के पीले फूल पूछते हैं मुझसे
पूरब की खिड़की मेरी बंद है कब से
पीपल के सूखे, झड़े हुए पत्ते
उड़ते-उखड़ते तुम्हें चाहते हों जैसे
पीलेपन में इनके जब तुम छा जाते हो
धीरे से आकर इन्हें थपथपाते हो,
तब याद आते हो।
परछाईयों तक पसरकर शाम की मरियल धूप
मांगती है मुझसे अपना सुनहरा रंग-रूप
शिकवा करती है तुम्हारी यह पागल हवा
पूछती है कहाँ गई वह सोंधी सबा
अनजान बनकर दामन जब छोड़ जाते हो
हसरतों को इनकी जब आज़माते हो,
तुम याद आते हो।